“ भोर हुआ सुरज उग आया , जल में पडी सुन्हरी छाया
ऐसा सुंदर समय न खोओ , मेरे प्यारे अब मत सोओ“
मैं अत्याधिक आशावादी हूं परंतु सोंचता हूँ हमारे देश में वो सुबह कब होगी जब माँ वास्तव मै ऐसा गीत गा सकेगी. आज हालात ऐसे हैं की मानो हम ने प्रण कर लिया हो कि हम चिरनिद्रा से नहीं जागेगें. हमारे आसपास व्याप्त अव्यवस्था को सहते रहने की आदत सी पड गयी है हमें. आज के हालात में माता के शब्द तो यही कहगें :
ईंट–पत्थर के जंगल में, धूल भरी आंधी में बह लो
वन-उपवन है इतिहास की बातें, सूखे वृक्षों से छाया ले लो
मरुस्थल देश में नहीं है पानी, चलो आंसुओं से मुँह धोलो
उठो जागो नोनिहालो ……..
साठ साल गणतंत्र के बीते, पराधीनता की गाठं न खोली
सोये रहे बेपरवाह तुम, जात-धर्म की चादर ओढी
उग न पाया प्रगति का सूरज, अब तो अपनी कुछ सुध ले लो
उठो जागो नोनिहालो ……..
भ्रष्ठ नेताओं ने देश है लूटा, तुम्हारे पैर को मिला न जूता
पीते वो दूध खाते-रबडी मलाई, तुम्हे ले डूबी महंगाई
फिर भी चुप हो कुछ तो बोलो, मरयादा की दीवार को तोड़ो
उठो जागो नोनिहालो ……..
धीरे से ही सही, क्रांति का बिगुल तो बजाओ
आक्रोश से अपने, सोयी व्यवस्था को जगाओ
परिवर्तन की आंधी में बहकर, इन्कलाब का हल्ला बोलो
उठो जागो नोनिहालो ……..
“राम तुम हो, केवट वो है , स्वामी तुम हो, सेवक वो है “
नहीं केवल आपनी जेबें भरें, नेता हैं, तो जनता कि सुध लो
उठो जागो नोनिहालो ……..
माँ की मर्यादा जानो, लक्ष्य को अपने पहचानो
आगे बढते कदम रूकें नहीं, ऐसा मन में ठानो
संघर्ष की ज्वाला रहे जलती, संकल्प कर लो
देखकर देश की बदहाली, कुछ करने का प्रण कर लो..
राहुल