My daughter Rishika had tried to summarize the glory of “Gurudev” in few simple verses. She presented her poem on the occasion of a poetry recitation function held few days back to mark the occasion of 150th Birth anniversary of “Gurudev”. This is her tribute to this great towering figure of Indian culture……
जन-गण-मन के उदघोषक, क्यों न तुमको याद करूँ ?
नव-भारत के पथ-प्रदर्शक, क्यों न तुमको याद करूँ ?
सृजन संसार की प्रेणना बन, गीतांजली जैसा काव्य रचा
मधुर बांग्ला रबिंद्र संगीत, संस्कृति की धरोहर बना
विश्व-भारती के भानु-सिंहो, क्यों न तुमको याद करूँ ?
काबुली वाले से मन हर्षित हो , क्यों न तुमको याद करूँ ?
संसार ने भी लोहा माना, तब तुमने नोबल थामा
लौटा दिया अंग्रेजो का “सर” सम्मान, नृशंक हुआ जब जंलियांवाला काण्ड
गाँधी को “महात्मा” कहने वाले, क्यों न तुमको याद करूँ ?
आसीम कलाओं के स्वामी तुम , क्यों न तुमको याद करूँ ?
असंख्य साहित्य के सृजनकर्ता , गुरुदेव की वाणी अमर रहे
प्राचीन सभ्यता की रण-भेरी बन, दो देशों का राष्ट्र गान कहे
हिंदू , मुस्लिम, सिख, जैन, ईसाई , कही जन-जन के प्रेम की गाथा
निरंतर फैले कीर्ति तुम्हारी, धन्य भारतभूमि, जिसके तुम भाग्य-विधाता
जय हिंद ...
-रिशिका