मच्छर
सुबह आज जब मैं जागा
देखा कुछ मोटे मच्छर मस्त घूम रहें है
मच्छरदानी से बाहर निकलने का रास्ता ढूँढ़ रहें हैं
मन किया सब को मार डालूँ!
रात भर इन्होंने आखिर मेरा ही तो खून पिया है!
फिर सोंचा जाने दूँ ….
कुछ पल ही सही, जीवन मेरे संग तो जिया है!
क्यों करूँ? रक्त से इनके, गंदे अपने हाथ,
नहीं रहे अभी, जब मुझे ये काट!
पीड़ा भी तो नहीं दे रहे, अभी मुझको
मन किया, कर दूँ माफ इनको!
ये सोंचते-सोंचते, तकिये के नीचें से रिमोट निकाला
झट से टी◦ वी◦ औन का बटन दबाया,
और ज्यों ही अपना मन पसंद न्यूज-चैनल लगाया,
स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज को फ्लैश होता पाया:
आज सुबह साढ़े सात बजे, पूणे के येरवड़ा जेल में,
आंतकवादी अजमल कसाब को फाँसी......
सुन कर यह खबर,
विचलित मन, हो गया और भी खिन्न...
तब आया याद मुझे,
चार वर्ष पूर्व का वो मनहूस दिन...
अंधाधुन चलती गोलियाँ, वो बम के धमाके!!
आंतकवादी हमलें में, मुम्बई में बिछी लाशें!!
तब आया याद मुझे,
वो छ्त्रपति शिवाजी टर्मिनल, वो जलता हुआ होटल ताज
शर्मशार हुआ तिरंगा उस दिन, है जिसपर हमें बड़ा नाज
तब आये याद मुझे,
मेजर उन्नीकृष्णन, हेमंत करकरे, काम्टे और सालस्कर,
वो वीर एन◦ एस◦ जी◦ कमांडो, वो निर्भय पुलिस आफिसर
कर्तव्य पालन करके, जिन्होंने मौत को गले लगाया था
उन्हींका बलिदान देखिये! आज क्या खूब रंग लाया था
तब मुझे अह्सास हुआ अपनी भूल का
ह्रदय को पीड़ा देते उस शूल का
अरे!! मैं अभी ये क्या करने जा रहा था ?
अपना ही खून पीने वाले मच्छरों को बचा रहा था
अगर ये मरे नहीं, तो औरों को भी काटेगें,
क्या बूढ़े? क्या नौजवान? क्या बच्चे?.. सभी को बिमारियाँ बाँटेगें...
तब जल्दी से मैंने मच्छ्दानी को, चारों तरफ से दबाया
इससे पहले मच्छर, खुले छिद्रों से भाग पाते…
चट! चट! की आवाज से कमरे में गूंज गये चाटें...
सारे पलंग पर मच्छरों की लाशें बिछ गईं
लाल हथेली देख अपनी, मेरी भी बाछें खिल गईं
आज मेरा अभिमान भी, अपने राष्ट्रापति से कम न था हूजूर !
जिसने फाइल पर लिख दिया था :
अजमल कसाब की क्षमादान याचना नामंजूँर... नामंजूँर.....