नदी बन बह जाऊँ , तब मुझे रोकना
बंधना सीमा मै नहीं सहय मुझे, पर्याय विस्तार का बन सकता हूँ मैं
डर नहीं तम अंधकार का मुझे, लौ दिये की बन जल सकता हूँ मैं
बन प्रेम हृदय उतर जाऊँ, तब मुझे रोकना
सांसो में तुम्हरी घुल जाऊँ, तब मुझे रोकना
बेल बन लिपटना नहीं रचता मुझे, मिसाल स्वावलंबन की बन सकता हूँ मैं
रहना जुदा भीड़ में भाता मुझे, पह्चान अलग अपनी बन सकता हूँ मैं
पुष्प बन पुलकित हो जाऊँ, तब मुझे रोकना
स्वप्न बन विस्मृत कर जाऊँ, तब मुझे रोकना
लगना दीवार पे बन तस्वीर नहीं गवारा मुझे, अक्स तुम्हारा बन सकता हूँ मैं
झकझोरता नहीं है तूफ़ान मुझे, पतवार तुम्हारी नाँव की बन सकता हूँ मै
कविता बन गूंज जाऊँ, तब मुझे रोकना
अतीत में खो जाऊँ, तब मुझे रोकना
-राहुल